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Sunday, May 12, 2013

एक छोटी सी मुलाकात.....


ना जाने क्यूँ इन तन्हाईयों से
कुछ रिश्ता सा लगता है,
तेरे बगे जिंदगी का हर
        पल बिछड़ा सा लगता है........

कुछ तो रही होगी बात
जो हुई वो छोटी सी मुलाकात,
इस तरह यूँही कोइ भी,
     राहगीर नहीं अपना सा लगता है......

सोचती हूँ जब भी कि
कैसा वो इतेफाक था,
कि अन्जना सा रास्ता भी,
अब पेह्चना सा लगता है...

कभी कभी मिल जाते है
कुछ लोग इस कदर,
बिछड़ के फिर मिलने
                   का अरमान सा लगता है...............

--जसमीत

Sunday, May 5, 2013

सिलवटे............


सुलझा सकता जो उन होठो की सिलवटों को,
और खीच देता उन दो लकीरों को,
मुस्कान कहती दुनिया उसे,
मेरे लिए तो ज़िन्दगी होती.....

कर देता वो ब्यान,
जो भी है इस दिलके अरमान,
दीवानापन कहती दुनिया उसे,
मेरे लिए तो बंदगी होती,

रोक देता वो लहर,
जो आती उन आँखों पर,
बेवकूफी कहती दुनिया उसे,
मेरे लिए आवारगी होती,

कह देता तुमसे मैं वो,
छुटला न सकता कोई जो,
नासमझी कहती दुनिया उसे,
मेरे लिए तो दीवानगी होती......

--मलय

अकेली भीड़..........


अकेली सी वो भीड़ थी,
में भी उसके साथ खो गया.
जब दो अकेले मिले,
ये जहाँ और अकेला हो गया.....

अकेली हर राह थी,
अकेली ही थी मंजिल.
अकेली थी वो झील भी,
और अकेला ही था उसका साहिल,
अकेला वो मुसाफिर भी,
अकेली राह पर खो गया,
जब दो अकेले मिले,
ये जहाँ और अकेला हो गया.....

बिना चाँद के अकेली वो रात थी,
बिना दिन के अकेली थो वो सांझ,
बिना बारिश के अकेले वो बादल,
बिना जीवन के अकेली थी वो सांस,
अकेली सी उस मौत के साथ,
अकेला जीवन हो गया,
जब दो अकेले मिले,
ये जहाँ और अकेला हो गया.....

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